जो कहे मैं किसी आलिम की बात नहीं मानता उस पर क्या हुक्म है ?
सवाल: ज़ैद है जो किसी आलिम की बात नहीं मानता और यह भी कहता है कि मैं उन की बात क्यों मानूं मैं जो पढूंगा वही मानूंगा तो क्या ज़ैद काफिर हो गया ज़ैद के कहने का मतलब यह है कि शरई बात को नहीं मानूंगा हवाले के साथ जवाब इनायत फरमाएं
साईल:गुलाम नबी बनारस
जवाब: ज़ैद ने अगर शरई अहकाम के मुतअलिक कहा कि मैं क्यों मानूं तो उस पर तौबा लाज़िम है और ज़ैद का यह कहना कि मैं जो पढ़ुंगा वही मानूंगा यह बात ज़ैद की जहालत पर मबनी है क्योंकि बहारे शरीअत व दीगर कुतुब ए फिक़्ह मै कुछ ऐसे मसाईल है जिन्हें आम इंसान के लिए समझना बहुत मुश्किल है लेकिन ज़ैद काफीर नहीं होगा मगर खुद की अक़ल से शरई अहकाम अखज़ करने की कोशिश करेगा तो गुमराह होने का इमकान ज़रूर है अल्लाह पाक फरमाता है तो ए लोगों इल्म वालों से पूछो अगर तुम्हें इल्म ना हो (सूर ए अंबिया आयत 7 पारा 17)
इस आयत से तक़लीद का वजूब साबित होता है यहां इल्म वालों से पूछने का हुकुम दिया गया है
अज़ कलम
हज़रत मौलाना मोहम्मद मासूम रज़ा नूरी
हिन्दी ट्रान्सलेट
मौलाना रिजवानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी