(एहराम बांधने के बाद उमरा या हज ना कर सका तो क्या करे ?)

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 (एहराम बांधने के बाद उमरा या हज ना कर सका तो क्या करे ?)

अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि बरकातूह
सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला के बारे में कि ज़ैद ने हज या उमरा का एहराम बांधा फिर बीमार हो गया और हज व उमरा पूरा ना कर सका तो उसके लिए क्या हुक्म है ?

साइल : गुलाम समदानी दौलतपुर
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि बरकातूह
जवाब : जो शख्स शरई वुजूहात की बिना पर हज या उमरा ना कर सके वह मुहसिर है।और इस के लिए हुक्म यह है कि जानवर की क़ीमत भेज कर हलाल हो जाए और आइंदा साल क़ज़ा करे।हज़रत शैख निज़ामुद्दीन और उलमा ए हिंद की एक जमाअत ने तहरीर फरमाया है

" اما حكم الاحصار فهو ان يبعث بالهدى او بثمنه يشترى به هديا و يذبح عنه و ما لم يذبح لا يحل و هو قول عامة العلماء و يجب أن يواعد يوما معلوما يذبح عنه فيحل بعد الذبح ولا يحل قبله حتى لو فعل شيئا من محظورات الاحرام قبل ذبح الهدى يجب عليه ما يجب على المحرم اذا لم يكن محصرا "

तर्जुमा : लेकिन एहसार का हुक्म यह है कि मुहसिर हदी या हदी की क़ीमत भेज दे ताकि उसकी तरफ से क़ुर्बानी की जाए और जब तक ज़िब्ह ना हो जाए एहराम नहीं खोल सकता यही आम उलमा का क़ौल है और वाजिब है कि दिन मुअय्यन कर दे कि फलां दिन ज़िब्ह की जाए फिर ज़िब्ह के बाद एहराम खोल सकता है और इस से पहले नहीं खोल सकता यहां तक कि अगर एहराम के ममनूआत में से किसी का इरतेकाब किया तो उस पर दम वाजिब है।फिर चंद सतर बाद है

" اذا تحلل المحصر بالهدى و كان مفردا بالحج فعليه حجة وعمرة من قابل و ان كان مفردا بالعمرة فعليه عمرة مكانها و ان كان قارنا فانما يتحلل يذبح هديين و عليه عمرتان و حجة كذا في المحيط اھ "

तर्जुमा : हदी के ज़रिए हलाल होने वाला मुहसिर अगर मुफरद बिल हज हो तो उस पर आइंदा साल एक हज और एक उम्र है और अगर मुफरद बिल उमरा है तो उस पर उसकी जगह एक उमरा है, और अगर क़ारिन है तो दो हदीयों के ज़रिए हलाल होगा और उस पर आइंदा साल दो उमरा और एक हज है ऐसा ही "मुहीत" में है।और इस में सफा 256 पर है

" هدى الاحصار لا يجوز ذبحه الا في الحرم عندنا و يجوز ذبحه قبل يوم النحر وبعده عند ابي حنيفة رحمه الله تعالى " اهـ "

तर्जुमा : एहसार की क़ुर्बानी गैरे हरम में ज़िब्ह करना जायज़ नहीं है, और उस क़ुर्बानी का यौमुन नहर से क़ब्ल व बाद इमामे आज़म के नज़दीक ज़िब्ह जायज़ है।(फतावा हिंदी या जिल्द 1 सफा 255)

हुज़ूर फक़ीहे मिल्लत मुफ्ती जलालुद्दीन अहमदुल अमजदी अलैहिर्रहमा ने रक़म फरमाया है कि" जिस शख्स ने मुंबई में एहराम बांध लिया फिर मक्का शरीफ के लिए रवाना ही होने वाला था कि पासपोर्ट में किसी गलती की वजह से उसका सफर मुल्तवी कर दिया गया तो वह शरअ के नज़दीक मुहसिर है। और मुहसिर यानी जो हज उमरा का एहराम बांध ले मगर किसी वजह से पूरा ना कर सके तो उस के लिए हुक्म है कि क़ुर्बानी का जानवर या उसकी क़ीमत किसी हाजी को दे दे जो हराम शरीफ में उसकी तरफ से क़ुर्बानी कर दे। इस लिए की उस क़ुर्बानी का हरम में होना शर्त है हरम से बाहर नहीं हो सकती मगर 10, 11, 12, की शर्त नहीं इन तारीखों से पहले और इन के बाद में भी कर सकते हैं।

अलबत्ता यह ज़रूरी है कि जिसे क़ुर्बानी के लिए दे दे उस सेे कोई वक़्त मुतअय्यन  कर ले कि आप फलां दिन फलां वक़्त क़ुर्बानी करें और जब वह वक़्त गुज़र जाए तो एहराम खोल दे और बेहतर यह है कि सर मुंड़ा कर एहराम खोले।

लेकिन जो वक़्त मुतअय्यन किया था अगर किसी वजह से उसके बाद क़ुर्बानी हुई और वह यहां उस से पहले ही एहराम से बाहर हो गया था तो दम दे, और अगले साल मुहसिर उसकी क़ज़ा करे, अगर सिर्फ हज का एहराम था तो क़ज़ा में एक हज और एक उमरा करे और क़ारिन था तो एक हज और दो उमरा करे और दो जानवर ज़िब्ह करे और अगर उमरा का एहराम था तो सिर्फ एक उमरा करे।(फतावा फक़ीहे मिल्लत जिल्द 1 सफा 350)वल्लाहु तआला व रसूलुहुल आला आलमु बिस्सवाब अज़्ज़ व जल व सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम

अज़ क़लम
अब्दुल वकील सिद्दीक़ी नक्शबंदी फलोदी राजस्थान अल हिंद
20 जमादिल अव्वल 1446 हिजरी मुताबिक़ 23 नवम्बर 2024 बरोज़ हफ्ता
हिंदी अनुवादक 
 मुहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी दुदही कुशीनगर
मुक़ीम : पुणे महाराष्ट्र
16 जमादिल आखिर 1446 हिजरी मुताबिक़ 19 दिसंबर 2024 ब रोज़ जुमेरात
मीन जानिब : मसाइले शरइय्या ग्रुप
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